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जब भी उठता था सुबह,चाय ले के मेरे सामने होती थी
रात में मुझे खिला के खाना,सबको सुला के ही सोती थी
बीमार जो होता कभी मै,तो घंटो गीली पट्टियां मेरे सिर पे रखती थी
मेरी हर उलटी सीधी जिद को बढ़ चढ़ के पूरा करती थी
बचपन में स्कूल जाते वक़्त ,मै उससे लिपट के रोया करता था
रात को अँधेरे के डर से,उसके हाथ पे सिर रख के सोया करता था
छुट्टी के दिन भी कभी उसकी छुट्टी नही हो पाती थी
पूछ के हमसे मनपसंद खाना,फिरसे किचन में जुट जाती थी
सरिद्यों में हमे अपने संग धूप में बिठा लेती थी
अलग अलग रंग के स्वेटर हमारे लिए बुना करती थी
सुबह के नाश्ते से रात के दूध तक बस मेरी ही चिंता करती है
ऐसी है मेरी माँ,जो हर दुआ हर मंदिर में बस मेरी ख़ुशी माँगा करती है
कहने को बहुत दूर आ गया हूँ मै,पर हर वक्त उसका दुलार याद आता है
खाना तो महंगा खा लेता हूँ बाहर,पर उसके हाथ का दाल चावल याद आता है
घूम लिए है देश विदेश,पर उसके साथ सब्जी लेने जाना याद आता है
स्कूल से आ के बैग फेक के उसके गले लग जाना बहुत याद आता है
आज भी जब जाता हूँ घर,फिरसे मेरी पसंद के पराठे बना देती है
मेरे मैले कपड़ो को साफ़ करके ,फिरसे तहा देती है
जब जा रहा होता हूँ वापस,फिर से उसकी आंखे नम हो जाती है
सच कहता हूँ माँ ,अकेले में रो लेता हूँ पर मुझे भी तू बहुत याद आती है
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