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इतना कहूँगा दोस्तों ,तुम्हारे बिना आज भी रात नही होती

कुछ बातें अनकही
कुछ बातें अनकही
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ये तो न सोचा था कभी कि इतना आगे आ जाऊंगा मै
सोच कर पुराने हसीँ लम्हे,अकेले में कहीं मुस्कुराऊंगा मै
याद आते है सारे पल उस शहर के,उनमे क्या फिरसे खो पाउँगा मै
वो छोटी से पटरी पे प्लास्टिक कि गाड़ी,अब न कभी उसे चला पाउँगा मै
वो गर्मी कि छुट्टी , वो भरी हुई मुठ्ठी
वो पोस्टमैन का आना और गाँव कि कोई चिठ्ठी
मोहल्ले के साथी और क्रिकेट के झगड़े
वो बारिश के मौसम में कीचड वाले कपड़े
वो पापा का स्कूटर और दीदी कि वो गाड़ी
वो छोटे से मार्केट से माँ लेती थी साड़ी
भैया कि पुरानी किताबो में निशान लगे सवाल
वो होली कि हुडदंग में उड़ता हुआ गुलाल
दीवाली के पटाखे और दशहरे के मेले
काश साथ मिल कर हम फिर से वो खेले
स्कूल के वो झगड़े और कॉलेज के वो लफड़े
वो ढाबे की चाय और लड़कियों के कपड़े
सेमेस्टर के पेपर और रातों की पढाई
आखिर का सवाल था बंदी किसने पटाई
हॉस्टल के किस्से और जवानियों के चर्चे
वो प्रक्टिकल में पाकेट में छुपाये हुए पर्चे
वो सिगरेट का धुआं और दारू की वो बस्ती
आज भी चल रही है उधर पे ये कश्ती
आज बात नही होती ,मुलाकात नही होती
इतना कहूँगा दोस्तों ,तुम्हारे बिना आज भी रात नही होती

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